Archive for ‘अंतरिक्ष यान’

फ़रवरी 9, 2011

ट्राईटन

ट्राईटन

ट्राईटन

यह नेपच्युन का सांतवा ज्ञात और सबसे बड़ा चन्द्रमा  है।

कक्षा : 354,760 किमी नेपच्युन से
व्यास : 2700 किमी
द्रव्यमान : 2.14e22 किग्रा

इसकी खोज लासेल ने 1846मे नेपच्युन की खोज के कुछ सप्ताहो मे की थी।

ग्रीक मिथको मे ट्राईटन सागर का देवता है जो नेपच्युन का पुत्र है; इसे मानव के धड़ और चेहरे लेकिन मछली के पुंछ वाले देवता के रूप मे दर्शाया जाता है।

ट्राईटन के बारे मे हमारी जानकारी वायेजर 2 द्वारा 25अगस्त 1989 की यात्रा मे प्राप्त जानकारी तक सीमीत है।

ट्राईटन विपरित दिशा मे नेपच्युन की परिक्रमा करता है। बड़े चंद्रमाओ मे यह अकेला है जो विपरित दिशा मे परिक्रमा करता है। अन्य विपरित दिशा मे परिक्रमा करने वाले बृहस्पति के चन्द्रमा एनान्के, कार्मे, पासीफे तथा सीनोपे और शनि का चन्द्रमा फोबे ट्राईटन के व्यास के 1/10 भाग से भी छोटे है। अपनी इस विचित्र परिक्र्मा के कारण प्रतित होता है कि ट्राईटन शायद सौर मंडल की मातृ सौर निहारिका से नही बना है। यह कहीं और (काईपर पट्टे) मे बना होगा और बाद मे नेपच्युन के गुरुत्व की चपेट मे आ गया होगा। इस प्रक्रिया मे वह नेपच्युन के किसी चन्द्रमा से टकराया होगा। यह प्रक्रिया नेरेईड की आसामान्य कक्षा के पिछे एक कारण हो सकती है।

अपनी विपरित कक्षा के कारण नेपच्युन और ट्राइटन के मध्य ज्वारिय बंध ट्राईटन की गतिज उर्जा कम कर रहा है जिससे इसकी कक्षा छोटी होते जा रही है। भविष्य मे ट्राईटन टूकड़ो मे बंटकर वलय मे बदल जायेगा या नेपच्युन से टकरा जायेगा। इस समय यह एक कल्पना मात्र है।

ट्राईटन का घुर्णन अक्ष भी विचित्र है। वह नेपच्युन के अक्ष के संदर्भ मे 157 डिग्री झुका हुआ है जबकि नेपच्युन का अक्ष 30 डिग्री झुका हुआ है। कुल मिला कर ट्राईटन का घुर्णन अक्ष युरेनस के जैसे है जिसमे इसके ध्रुव और विषुवत के क्षेत्र एक के बाद एक सूर्य की ओर होते है। इस कारण से इसपर विषम मौसमी स्थिती उत्पन्न होती है। वायेजर 2 की यात्रा के समय इसका दक्षिणी ध्रुव सूर्य की ओर था।

ट्राईटन का घनत्व (2.0) शनि के बर्फिले चन्द्रमाओ जैसे रीआ से ज्यादा है। ट्राईटन मे शायद 25% पानी की बर्फ और शेष चट्टानी पदार्थ है।

वायेजर ने ट्राईटन पर वातावरण पाया था जो कि पतला( 0.01 मीलीबार) है और मुख्यतः नाईट्रोजन तथा कुछ मात्रा मे मिथेन से बना है। एक पतला कोहरा 5 से 10किमी उंचाई तक छाया रहता है।

ट्राईटन की सतह पर तापमान 34.5 डीग्री केल्विन (-235 डीग्री सेल्सीयस) रहता है जो कि प्लूटो के जैसे है। इसकी चमक ज्यादा है(0.7-0.8) जिससे सूर्य की अत्यल्प रोशनी की भी छोटी मात्रा अवशोषित होती है। इस तापमान पर मिथेन, नाईट्रोजन और कार्बन डाय आक्साईड जमकर ठोस बन जाती है।इस पर कुछ ही क्रेटर दिखायी देते है;इसकी सतह नयी है। इसके दक्षिणी गोलार्ध मे नायट्रोजन और मिथेन की बर्फ जमी रहती है।ट्राईटन की सतह पर जटिल पैटर्न मे पर्वत श्रेणी और घाटीयां है जो कि शायद पिघलने/जमने के प्रक्रिया के कारण है।

ट्राईटन की सतह पर इसके ज्वालामुखी द्वारा उत्सर्जित नायट्रोजन के प्रवाह से बनी धारियां

ट्राईटन की सतह पर इसके ज्वालामुखी द्वारा उत्सर्जित नायट्रोजन के प्रवाह से बनी धारियां

ट्राईटन की दूनिया मे सबसे विचित्र इसके बर्फिले ज्वालामुखी है। इनसे निकलनेवाला पदार्थ द्रव नाईट्रोजन, धूल और मिथेन के यौगिक है। वायेजर के एक चित्र मे एक ज्वालामुखी(हिममुखी) सतह से 8 किमी उंचा और 140 किमी चौड़ा है।

ट्राईटन, आयो, शुक्र और पृथ्वी सौर मंडल मे सक्रिय ज्वालामुखी वाले पिंड है। मंगल पर भूतकाल मे ज्वालामुखी थे। यह भी एक विचित्र तथ्य है कि पृथ्वी और शुक्र (मंगल भी )के ज्वालामुखी चट्टानी पदार्थ उत्सर्जित करते है और अंदरूनी गर्मी द्वारा चालित है, जबकि आयो के ज्वालामुखी गंधक या गंधक के यौगिक उत्सर्जित करते है और बृहस्पति के ज्वारिय बंध द्वारा चालित है, वहीं ट्राईटन के ज्वालामुखी नाईट्रोजन या मिथेन उत्सर्जित करते है तथा सूर्य द्वारा प्रदान मौसमी उष्णता से चालित है।

दिसम्बर 16, 2010

सौर मंडल का एक अवलोकन

सौर मंडल मे सूर्य, आठ मुख्य ग्रहों, कम से कम तीन ‘बौने ग्रह‘ , ग्रहों के 130 से अधिक उपग्रहों, बड़ी संख्या में छोटे पिंड(धूमकेतु और क्षुद्रग्रह), और ग्रहों के बीच के माध्यम  का समावेश है। (ध्यान रहे अभी  कई और उपग्रह ऐसे है जिन्हे  अभी तक खोजा नहीं गया है।)

आंतरिक सौर मंडल मे सूर्य , बुध , शुक्र , पृथ्वी और मंगल ग्रह शामिल हैं  :

आंतरिक ग्रह

आंतरिक ग्रह

मुख्य क्षुद्रग्रह पट्टी  बृहस्पति और मंगल ग्रह की कक्षाओं के बीच स्थित हैं(चित्र मे नही दिखाया गयी है)।  बाह्य सौर ग्रहों मे बृहस्पति , शनि , यूरेनस और नेप्च्यून का समावेश है। (ध्यान दे :  प्लूटो  अब एक बौना  ग्रह (Dwarf Planet)के रूप में वर्गीकृत है।)

बाह्य ग्रह

बाह्य ग्रह

सौर मंडल मे अंतरिक्ष ज्यादातर रिक्त(void) है। ग्रहों  के बीच की रिक्त जगह की तुलना करने के लिए ग्रह  बहुत छोटे हैं। यहां तक कि चित्र पर बिन्दू भी ग्रहों के सही आकारों की तुलना मे काफी बड़े है।

कक्षायें

ग्रहों की कक्षायें दिर्घवृत्त(Ellipse) के आकार की है जिसके एक केन्द्र(Focus) मे रवि है, हालांकि बुध की कक्षा लगभग वृताकार है।  सभी ग्रहो की कक्षाये लगभग एक ही प्रतल मे है , जिसे क्रांतिवृत्त कहते है। यह क्रांतिवृत्त पृथ्वी  की कक्षा के प्रतल के द्वारा परिभाषित है (दूसरे शब्दों में क्रांतिवृत्त का प्रतल और पृथ्वी की परिक्रमा का प्रतल एक ही है)। यह क्रांतिवृत्त रवि की भूमध्य रेखा के प्रतल से ७ डिग्री उपर है। चित्र सभी आठ ग्रहों  की कक्षा सापेक्ष आकार मे दर्शाता  है। सभी ग्रह एक ही दिशा (वामावर्त) मे रवि की परिक्रमा करते है। शुक्र, यूरेनस और प्लूटो को छोड़कर सभी ग्रह इसी दिशा मे घूर्णन करते है लेकिन शुक्र, यूरेनस और प्लूटो विपरीत दिशा मे घूर्णन करते है।

ऊपर वाला चित्र अक्टूबर 1996 को सभी ग्रहो की सही स्थिति दर्शाता है।

आकार

तुलनात्मक आकार मे सभी ग्रह (प्लूटो सहित)

तुलनात्मक आकार मे सभी ग्रह (प्लूटो सहित)

ऊपर दिया चित्र  सभी आठ ग्रहों और प्लूटो के तुलनात्मक आकार को दर्शाता है।

सौर मंडल के पिण्डो के तुलनात्मक आकार की कल्पना करने के लिये हमे उन्हे १ अरब गुना छोटा कर देखना होगा।   इस माडल के अनुसार :

  • पृथ्वी का आकार 1.3 सेमी व्यास (अंगूर के दाने के बराबर) का होगा ;
  • चंद्रमा पृथ्वी से 30सेमी दूर होगा;
  • सूर्य 1.5 मीटर व्यास का(मानव की उंचाई के बराबर) और पृथ्वी से 150 मीटर दूरी पर होगा;
  • बृहस्पति 15 सेमी व्यास का(एक बड़े संतरे के आकार का) तथा सूर्य से 750 मीटर दूरी पर होगा;
  • शनि एक संतरे के आकार मे सूर्य से 1500 मीटर दूर तथा
  • यूरेनस और नेपच्यून   नींबु के आकार मे क्रमशः 3 किमी , 4 किमी दूरी पर होंगे।
  • मानव एक परमाणु के बराबर होगा।
  • निकटतम तारा  प्राक्सीमा 4000 किमी पर होगा।

ऊपर के  चित्र मे सौर मण्डल के कई पिण्ड नही दिखाए गये है। इनमे शामिल है,

  • ग्रहो के उपग्रह;
  • क्षुद्रग्रह जो रवि की परिक्रमा कर रहे है (अधिकतर बृहस्पति और मंगल ग्रह की कक्षा के मध्य है);
  • धूमकेतु (छोटे बर्फीले पिंड जो  सौर मंडल मे आते जाते रहते है और उनकी कक्षा  क्रांतिवृत्त से झुकी हुयी होती है) और
  • छोटे क्विपर बेल्ट के बर्फिले पिंड जो नेप्च्यून  से परे है  । कुछ अपवादों को छोड़्कर ग्रहों के उपग्रहों की कक्षा कांतिवृत्त के प्रतल मे ही परिक्रमा करते है लेकिन यह क्षुद्रग्रहों  और धूमकेतु के लिए सच  नहीं है।

ग्रहो के वर्गीकरण मे कई विवाद है। परंपरागत रूप से, सौर प्रणाली को  निम्न वर्गो में विभाजित किया गया है।

  1. ग्रह( सूर्य की परिक्रमा करने वाले बड़े पिंड),
  2. उनके उपग्रह (चन्द्र, विभिन्न आकार के ग्रहों की परिक्रमा करते पिंड),)
  3. क्षुद्रग्रह (छोटे सूर्य की परिक्रमा करते पिंड )और
  4. धूमकेतु (छोटे बर्फीले पिंड जो अत्यधिक अनिश्चित की कक्षाओं मे सूर्य की परिक्रमा करते है)

सौर मंडल काफी जटिल है:

  • यहाँ बुध से बड़े दो चंद्रमा और प्लूटो बड़े कई चन्द्रमा है;
  • यहाँ कई छोटे चन्द्रमा ऐसे है जो  शायद कभी क्षुद्रग्रहों थे और बाद में ग्रहो ने उन्हे अपने गुरुत्वाकषण से बांध लिया;
  • धूमकेतु कभी कभी छोटे हो जाते है और क्षुद्रग्रह जैसे लगते है;
  • क्विपर बेल्ट के पिंडो की तरह  (प्लूटो  और शेरान सहित) इस प्रणाली मे मे अपवाद के जैसे है।
  • पृथ्वी / चंद्रमा युग्म और प्लूटो / शेरान युग्म  को कुछ वैज्ञानिक युग्म ग्रह मानते है।

ग्रहो का वर्गीकरण  रासायनिक संरचना या उत्तपत्ती के स्थान के आधार पर भी किया जा सकता है लेकिन इससे बहुत सारे वर्ग और अपवाद बन जाते है। लब्बोलुआब यह है कि कुछ पिंड अपने आप मे विशेष है और किसी वर्ग मे नही आते है।

आठ मान्य ग्रहों कई तरह से वर्गीकृत किया जा सकता है:

  • रचना द्वारा:
    • स्थलीय या चट्टानी ग्रह : बुध, शुक्र, पृथ्वी, और मंगल:
      • स्थलीय ग्रहों धातु और चट्टानो से बने है।  इनका अपेक्षाकृत उच्च घनत्व है, धीमी गति से घूर्णन करते है,  इनकी ठोस सतह है, कोई वलय नही है और कम संख्या मे चन्द्रमा है।
    • गैस ग्रह: बृहस्पति, शनि, यूरेनस और नेपच्यून:
      • आम तौर पर गैस ग्रह मुख्य रूप से हीलियम और हाइड्रोजन के बने हैं और इनका  घनत्व कम है, कई उपग्रह है, तेजी से घूर्णन करते है , गहरा वातावरण है, बहुत सारे वलय है।
  • आकार से:
    • छोटे ग्रह: बुध, शुक्र, पृथ्वी, मंगल ग्रह।
      • छोटे ग्रहों जिनका कम से कम व्यास 13000 किमी है ।
    • विशाल ग्रह: बृहस्पति, शनि यूरेनस और नेपच्यून।
      • विशाल ग्रहों  व्यास 48000 किमी  से अधिक है।
    • विशाल ग्रहों  को कभी कभी गैस महादानव भी कहते है।
  • सूर्य के सापेक्ष द्वारा स्थिति:
    • आंतरिक ग्रहों: बुध, शुक्र, पृथ्वी और मंगल ग्रह.
    • बाहरी ग्रह: बृहस्पति, शनि, यूरेनस, नेपच्यून.
    • मंगल और बृहस्पति के बीच छोटा क्षुद्रग्रह की पट्टी बाह्य ग्रहो और आंतरिक ग्रहो को अलग करती है।
  • पृथ्वी के सापेक्ष स्थिति के द्वारा :
    • अंदरूनी ग्रह: बुध और शुक्र.
      • पृथ्वी से सूर्य के करीब.
      • अंदरूनी ग्रह की पृथ्वी से चंद्रमा की तरह कला दिखती है।
    • पृथ्वी.
    • बाह्य ग्रह:   मंगल ग्रह से नेपच्यून ग्रह तक .
      • सूर्य से पृथ्वी के आगे.
      • बाह्य ग्रहों हमेशा पूरे दिखाई या लगभग पूरे दिखायी देते है।
  • इतिहास द्वारा :
    • शास्त्रीय ग्रह: बुध, शुक्र, मंगल, बृहस्पति और शनि
      • ऐतिहासीक काल से ज्ञात ग्रह।
      • नंगी आँख से दिखायी देते है।
      • प्राचीन समय में इसमे सूर्य और चण्द्रमा भी शामिल थे।
    • आधुनिक ग्रह: यूरेनस, नेपच्यून.
      • आधुनिक काल मे खोज।
      • दूरबीन से ही दिखायी देते है।
    • पृथ्वी.
    • IAU के निर्णय के अनुसार शास्त्रीय ग्रहो मे प्लूटो को छोड़ दिया गया है। इस श्रेणी मे अब बुध से लेकर नेप्च्युन तक आठ ही ग्रह है।