जनवरी 25, 2012

सौर मंडल की सीमाये

सौरमंडल सूर्य और उसकी परिक्रमा करते ग्रह, क्षुद्रग्रह और धूमकेतुओ से बना है। इसके केन्द्र मे सूर्य है और सबसे बाहरी सीमा पर नेप्च्युन ग्रह है। नेपच्युन के परे प्लुटो जैसे बौने ग्रहो के अलावा धूमकेतु भी आते है।
हीलीयोस्फियर (heliosphere)
हमारा सौरमंडल एक बहुत बड़े बुलबुले से घीरा हुआ है जिसे हीलीयोस्फियर कहते है। हीलीयोस्फीयर यह सौर वायु द्वारा बनाया गया एक बुलबुला है, इस बुलबुले के अंदर सभी पदार्थ सूर्य द्वारा उत्सर्जित हैं। वैसे इस बुलबुले के अंदर हीलीयोस्फीयर के बाहर से अत्यंत ज्यादा उर्जा वाले कण प्रवेश कर सकते है!

सौरवायु यह किसी तारे के बाहरी वातावरण द्वारा उत्सर्जीत आवेशीत कणो की एक धारा होती है। सौर वायु मुख्यतः अत्याधिक उर्जा वाले इलेक्ट्रान और प्रोटान से बनी होती है, इनकी उर्जा किसी तारे के गुरुत्व प्रभाव से बाहर जाने के लिये पर्याप्त होती है। सौर वायु सूर्य से हर दिशा मे प्रवाहित होती है जिसकी गति कुछ सौ किलोमीटर प्रति सेकंड होती है। सूर्य के संदर्भ मे इसे सौर वायु कहते है, अन्य तारो के संदर्भ मे इसे ब्रम्हांड वायु कहते है।

सूर्य से कुछ दूरी पर प्लुटो से काफी बाहर सौर वायु खगोलिय माध्यम के प्रभाव से धीमी हो जाती है। यह प्रक्रिया कुछ चरणो मे होती है। खगोलिय माध्यम यह हायड्रोजन और हिलीयम से बना हुआ है और सारे ब्रम्हांड मे फैला हुआ है। यह एक अत्याधिक कम घनत्व वाला माध्यम है।

  1. सौर वायु सुपर सोनिक गति से धीमी होकर सबसोनिक गति मे आ जाती है, इस चरण को टर्मीनेशन शाक(Termination Shock) या समापन सदमा कहते है।
  2. सबसोनिक गति पर सौर वायु खगोलिय माध्यम के प्रवाह के प्रभाव मे आ जाती है। इस दबाव से सौर वायु धूमकेतु की पुंछ जैसी आकृती बनाती है जिसे हीलीयोशेथ(Helioseath) कहते है।
  3. हीलीयोशेथ की बाहरी सतह जहां हीलीयोस्फियर खगोलीय माध्यम से मिलता है हीलीयोपाज(Heliopause) कहलाती है।
  4. हीलीयोपाज क्षेत्र सूर्य के आकाशगंगा के केन्द्र की परिक्रमा के दौरान खगोलीय माध्यम मे एक हलचल उतपन्न करता है। यह खलबली वाला क्षेत्र जो हीलीयोपाज के बाहर है बौ शाक (Bow Shock) या धनुष सदमा कहलाता है।

सौर मण्डल और उसकी सीमाये(पूर्णाकार के लिये चित्र पर क्लीक करें)

सौर मंडल की सीमाओ मे सबसे अंदरूनी सीमा है ‘टर्मीनेशन शाक(Termination shock)’  या समापन सदमा, इसके बाद आती है हीलीयोपाज(Heliopause) और अंत मे ‘बौ शाक(bow shock)’ या धनुष सदमा।

टर्मीनेशन शाक
खगोल विज्ञान मे टर्मीनेशन शाक यह सूर्य के प्रभाव को सीमीत करने वाली बाहरी सीमा है। यह वह सीमा है जहां सौर वायु के बुलबुलो की स्थानिय खगोलिय माध्यम के प्रभाव से कम होकर सबसोनिक(Subsonic) गति तक सीमीत हो जाती है। इससे संकुचन , गर्म होना और चुंबकिय क्षेत्र मे बदलाव जैसे प्रभाव उत्पन्न होते है। यह टर्मीनेशन शाक क्षेत्र सूर्य से 75-90 खगोलीय इकाई की दूरी पर है।(1 खगोलिय इकाई= पृथ्वी से सूर्य की दूरी)। टर्मीनेशन शाक सीमा सौर ज्वाला के विचलन के अनुपात मे कम ज्यादा होते रहती है।

समापन सदमा या टर्मीनेशन शाक की उतपत्ती का कारण तारो ने निकलते वाली सौर वायु के कणो की गति (400किमी /सेकंड) से ध्वनी की गति (0.33किमी/सेकंड) मे परिवर्तन है। खगोलिय माध्यम जिसका घनत्व अत्यंत कम होता है और उसपर कोई विशेष दबाव नही होता है ;वही सौर वायू का दबाव उसे उतपन्न करने वाले तारे की दूरी के वर्गमूल के अनुपात मे कम होती है। जैसे सौर वायु तारे से दूर जाती है एक विशेष दूरी पर खगोलिय माध्यम का दबाव सौर वायु के दबाव से ज्यादा हो जाता है और सौर वायु के कणो की गति को कम कर देता है जिससे एक सदमा तरंग(Shock Wave) उत्पन्न होती है।

सूर्य से बाहर जाने पर टर्मीनेशन शाक के बाद एक और सीमा आती है जिसे हीलीयोपाज कहते है। इस सीमा पर सौर वायु के कण खगोलीय माध्यम के प्रभाव मे पूरी तरह से रूक जाते है। इसके बाद की सीमा धनुष सदमा (बौ शाक-bow shock) है जहां सौरवायु का आस्तित्व नही होता है।

वैज्ञानिको का मानना है कि शोध यान वायेजर 1 दिसंबर 2004  मे टर्मीनेशन शाक सीमा पार कर चूका है, इस समय वह सूर्य से 94 खगोलीय इकाई की दूरी पर था। जबकि इसके विपरीत वायेजर 2 ने मई 2006 मे 76 खगोलिय इकाई की दूरी पर ही टर्मीनेशन शाक सीमा पार करने के संकेत देने शूरू कर दिये है। इससे यह प्रतित होता है कि टर्मीनेशन शाक सीमा एक गोलाकार आकार मे न होकर एक अजीब से आकार मे है।

हीलीयोशेथ
हीलीयोशेथ यह टर्मीनेशन शाक और हीलीयोपाक के बीच का क्षेत्र है। वायेजर 1 और वायेजर-2 अभी इसी क्षेत्र मे है और इसका अध्ययन कर रहे हैं। यह क्षेत्र सूर्य से 80 से 100 खगोलीय दूरी पर है।

हीलीयोपाज
यह सौर मंडल की वह सीमा है जहां सौरवायु खगोलीय माध्यम के कणो के बाहर धकेल पाने मे असफल रहती है। इसे सौरमंडल की सबसे बाहरी सीमा माना जाता है।

बौ शाक
हीलीयोपाज क्षेत्र सूर्य के आकाशगंगा के केन्द्र की परिक्रमा के दौरान खगोलीय माध्यम मे एक हलचल उत्पन्न करता है। यह हलचल वाला क्षेत्र जो हीलीयोपाज के बाहर है ,बौ-शाक या धनुष-सदमा कहलाता है।

दिसम्बर 1, 2011

विशालकाय, चमकिला

सबसे विशालकाय

सौर मंडल मे 17 पिंडो की त्रिज्या 1000 किमी से ज्यादा है।

नाम मातृ तारा/ग्रह दूरी (000किमी) व्यास किमी द्रव्यमान किग्रा
सूर्य 697000 1.99e30
बृहस्पति सूर्य 778000 71492 1.90e27
शनि सूर्य 1429000 60268 5.69e26
युरेनस सूर्य 2870990 25559 8.69e25*
नेपच्युन सूर्य 4504300 24764 1.02e26*
पृथ्वी सूर्य 149600 6378 5.98e24
शुक्र सूर्य 108200 6052 4.87e24
मंगल सूर्य 227940 3398 6.42e23
गनीमीड बृहस्पति 1070 2631 1.48e23+
टाईटन शनि 1222 2575 1.35e23+
बुध सूर्य 57910 2439 3.30e23+
कैलीस्टो बृहस्पति 1883 2400 1.08e23
आयो बृहस्पति 422 1815 8.93e22
चन्द्रमा पृथ्वी 384 1738 7.35e22
युरोपा बृहस्पति 671 1569 4.80e22
ट्राईटन नेपच्युन 355 1353 2.14e22
प्लूटो सूर्य 5913520 1160 1.32e22
  • * नेपच्युन युरेनस से थोड़ा ज्यादा घना है।
  • +बुध गनीमीड तथा टाईटन से ज्यादा घना है।

सबसे घना

11 पिंडो का घनत्व 3 ग्राम/घन सेमी से ज्यादा है।

नाम त्रिज्या (किमी) द्रव्यमान (kg) घनत्व(ग्राम/घन सेमी)
पृथ्वी 6378 5.97e24 5.52
बुध 2439 3.30e23 5.42
शुक्र 6052 4.87e24 5.26
आद्रस्टीआ 10 1.91e16 4.5
मंगल 3398 6.42e23 3.94
आयो 1815 8.93e22 3.53
चन्द्रमा 1738 7.35e22 3.34
एलारा 38 7.77e17 3.3
सीनोपे 18 7.77e16 3.1
लीस्थीआ 18 7.77e16 3.1
युरोपा 1569 4.80e22 3.01

सबसे ज्यादा चमकिला

१२ पिंडो की चमक ६ से ज्यादा है(पृथ्वी के संदर्भ मे), इन्हे नंगी आंखो से या बायनाकुलर से देखा जा सकता है।

नाम मातृ ग्रह/तारा दूरी(000किमी) त्रिज्या(km) Vo*
सूर्य ? 0 697000 -26.8
चन्द्रमा पृथ्वी 384 1738 -12.7
शुक्र सूर्य 108200 6052 -4.4
बृहस्पति सूर्य 778000 71492 -2.7
मंगल सूर्य 227940 3398 -2.0
बुध सूर्य 57910 2439 -1.9
शनि सूर्य 1429000 60268 0.7
गनीमीड बृहस्पति 1070 2631 4.6
आयो बृहस्पति 422 1815 5.0
युरोपा बृहस्पति 671 1569 5.3
युरेनस सूर्य 2870990 25559 5.5
कैलीस्टो बृहस्पति 1883 2400 5.6
मार्च 3, 2011

धूमकेतु या पुच्छल तारे

हेल बोप्प का धूमकेतु

हेल बोप्प का धूमकेतु

सौर मंडल के अन्य छोटे पिंडो के विपरित धूमकेतुओ को प्राचिन काल से जाना जाता रहा है। चीनी सभ्यता मे हेली के धूमकेतु को 240 ईसापूर्व देखे जाने के प्रमाण है। इंग्लैड मे नारमन आक्रमण के समय 1066मे भी हेली का धूमकेतु देखा गया था।
1995 तक 878 धुमकेतुओ को सारणीबद्ध किया जा चूका था और उनकी कक्षाओ की गणना हो चूकी थी। इनमे से 184 धूमकेतुओ का परिक्रमा काल 200 वर्षो से कम है; शेष धूमकेतुओ के परिक्रमा काल की सही गणना पर्याप्त जानकारी के अभाव मे नही की जा सकी है।

धूमकेतुओ को कभी कभी गंदी या किचड़युक्त बर्फीली गेंद कहा जाता है। ये विभिन्न बर्फो(जल और अन्य गैस) और धूल ला मिश्रण होते है और किसी वजह से सौर मंडल के ग्रहो का भाग नही बन पाये पिंड है। यह हमारे लिये महत्वपूर्ण है क्योंकि ये सौरमंडल के जन्म के समय से मौजूद है।

जब धूमकेतु सूर्य के समिप होते है तब उनके कुछ स्पष्ट भाग दिखायी देते है:

  • केन्द्रक : ठोस और स्थायी भाग जो मुख्यत: बर्फ, धूल और अन्य ठोस पदार्थो से बना होता है।
  • कोमा: जल, कार्बन डायाआक्साईड तथा अन्य गैसो का घना बादल जो केन्द्रक से उत्सर्जित होते रहता है।
  • हायड्रोजन बादल: लाखो किमी चौड़ा विशालकाय हायड़्रोजन का बादलधूल भरी पुंछ : लगभग १०० लाख किमी लंबी धुंये के कणो के जैसे धूलकणो की पुंछ नुमा आकृति। यह किसी भी धूमकेतु का सबसे ज्यादा दर्शनिय भाग होता है।
  • आयन पुंछ : सैकड़ो लाख किमी लंबा प्लाज्मा का प्रवाह जो कि सौर वायु के धूमकेतु की प्रतिक्रिया से बना होता है।
होम्स धूमकेतु(२००७)

होम्स धूमकेतु(२००७)

धूमकेतु सामान्यतः दिखायी नही देते है, वे जैसे ही सूर्य के समेप आते है दृश्य हो जाते है। अधिकतर धूमकेतुओ की कक्षा प्लूटो की कक्षा से बाहर होते हुये सौर मंडल ले अंदर तक होती है। इन धूमकेतुओ का परिक्रमाकाल लाखो वर्ष होता है। कुछ छोटे परिक्रमा काल के धूमकेतु अधिकतर समय प्लूटो की कक्षा से अंदर रहते है।

सूर्य की 500 या इसके आसपास परिक्रमाओ के बाद धूमकेतुओ की अधिकतर बर्फ और गैस खत्म हो जाती है। इसके बाद क्षुद्रग्रहो के जैसा चट्टानी भाग शेष रहता है। पृथ्वी के पास के आधे से ज्यादा क्षुद्रग्रह शायद मृत धूमकेतु है। जिन धूमकेतुओ की कक्षा सूर्य के समिप तक जाती है उनके ग्रहो या सूर्य  से टकराने की या बृहस्पति जैसे महाकाय ग्रह के गुरुत्व से सूदूर अंतरिक्ष मे फेंक दिये जाने की संभावना होती है।

सबसे ज्यादा प्रसिद्ध धूमकेतु हेली का धूमकेतु है। 1994 मे शुमेकर लेवी का धूमकेतु चर्चा मे रहा था जब वह बृहस्पति से टुकड़ो मे टूटकर जा टकराया था।

हेली का धूमकेतु

हेली का धूमकेतु

पृथ्वी जब किसी धूमकेतु की कक्षा से गुजरती है तब उल्कापात होता है। कुछ उल्कापात एक नियमित अंतराल मे होते है जैसे पर्सीड उल्कापात जो हर वर्ष 9 अगस्त और 13 अगस्त के मध्य होता है जब पृथ्वी स्विफ्ट टटल धूमकेतु की कक्षा से गुजरती है। हेली का धूमकेतु अक्टूबर मे होनेवाले ओरीयानाइड उल्कापात के लिये जिम्मेदार है।

काफी सारे धूमकेतु शौकिया खगोलशास्त्रीयो ने खोजे है क्योंकि ये सूर्य के समिप आने पर आकाश मे सबसे ज्यादा चमकिले पिंडो मे होते है।

मैकनाट धूमकेतु

मैकनाट धूमकेतु

1882का महान धूमकेतु

1882का महान धूमकेतु

मार्च 2, 2011

सेरेस : सबसे छोटा बौना ग्रह

सेरेस

सेरेस

सेरेस यह सबसे छोटा बौना ग्रह है। इसे पहले 1-सेरेस के नाम से क्षुद्रग्रह माना जाता था।

कक्षा : 446,000,000 किमी सूर्य से

व्यास : 950 किमी

सेरेस कृषी का रोमन देवता है।

इसकी खोज गुईसेप्पे पिआज्जी ने 1 जनवरी 1801 मे की थी।

सेरेस मंगल और बृहस्पति मे मध्य स्थित मुख्य क्षुद्र ग्रह पट्टे मे है। यह इस पट्टे मे सबसे बड़ा पिंड है। सेरेस का आकार और द्रव्यमान उसे गुरुत्व के प्रभाव मे गोलाकार बनाने के लिये पर्याप्त है। अन्य बड़े क्षुद्रग्रह जैसे 2 पलास, 3 जुनो तथा 10 हायजीआ अनियमित आकार के है।

सेरेस की संरचना

सेरेस की संरचना

सेरेस का एक चट्टानी केन्द्रक है और 100 किमी मोटी बर्फ की परत है। यह 100 किमी मोटी परत सेरेस के द्रव्यमान का 23-28 प्रतिशत तथा आयतन का 50प्रतिशत है। यह पृथ्वी पर के ताजे जल से ज्यादा है। इस के बाहर एक पतली धूल की परत है।

सेरेस की सतह ‘C’ वर्ग के क्षुद्रग्रह के जैसे है। सेरेस पर एक पतले वातावरण के संकेत मीले है।

सेरेस तक कोई अंतरिक्ष यान नही गया है लेकिन नासा का डान इसकी यात्रा 2015मे करेगा।

फ़रवरी 14, 2011

सूरज के बौने बेटे : क्षुद्रग्रह

२५३ मैथील्डे('C' वर्ग का क्षुद्रग्रह)

२५३ मैथील्डे('C' वर्ग का क्षुद्रग्रह)

क्षुद्र ग्रह पथरीले और धातुओ के ऐसे पिंड है जो सूर्य की परिक्रमा करते है लेकिन इतने लघु है कि इन्हे ग्रह नही कहा जा सकता। इन्हे लघु ग्रह या क्षुद्र ग्रह कहते है। इनका आकार १००० किमी व्यास के सेरस से १ से २ इंच के पत्थर के टुकडो तक है। क्षुद्रग्रहो का व्यास २४० किमी या उससे ज्यादा है। ये क्षुद्रग्रह पृथ्वी की कक्षा के अंदर से शनि की कक्षा से बाहर तक है। लेकिन अधिकतर क्षुद्रग्रह मंगल और गुरु के बिच मे एक पट्टे मे है। कुछ की कक्षा पृथ्वी की कक्षा को काटती है और कुछ ने भूतकाल मे पृथ्वी को टक्कर भी मारी है। एक उदाहरण महाराष्ट्र मे लोणार झील है।

क्षुद्र ग्रह का पट्टा(Asteroid Belt)

मुख्य क्षुद्रग्रह पटटा(सफेद), ट्राजन क्षुद्रग्रह (हरा)

मुख्य क्षुद्रग्रह पटटा(सफेद), ट्राजन क्षुद्रग्रह (हरा)

क्षुद्र ग्रह ये सौर मंडल बन जाने के बाद बचे हुये पदार्थ है। एक दूसरी कल्पना के अनुसार ये मंगल और गुरु के बिच मे किसी समय रहे प्राचीन ग्रह के अवशेष है जो किसी कारण से टूकडो टूकडो मे बंट गया। इस कल्पना का एक कारण यह भी है कि मंगल और गुरू के बिच का अंतराल सामान्य से ज्यादा है। दूसरा कारण यह है कि सूर्य के ग्रह अपनी दूरी के अनुसार द्रव्यमान मे बढ्ते हुये और गुरु के बाद घटते क्रम मे है। इस तरह से मंगल और गुरु के मध्य मे गुरु से छोटा लेकिन मंगल से बडा एक ग्रह होना चाहिये। लेकिन इस प्राचिन ग्रह की कल्पना सिर्फ एक कल्पना ही लगती है क्योंकि यदि सभी क्षुद्र ग्रहो को एक साथ मिला भी लिया जाये तब भी इनसे बना संयुक्त ग्रह १५०० किमी से कम व्यास का होगा जो कि हमारे चन्द्रमा के आधे से भी कम है।

क्षुद्रग्रहो के बारे मे हमारी जानकारी उल्कापात मे बचे हुये अबशेषो से है। जो क्षुद्रग्रह पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण से पृथ्वी के वातावरण मे आकर पृथ्वी से टकरा जाते है उन्हे उल्का (Meteoroids) कहा जाता है। अधिकतर उल्काये वातावरण मे ही जल जाती है लेकिन कुछ उल्काये पृथ्वी से टकरा भी जाती है।

इन उल्काओ का ९२% भाग सीलीकेट का और ५ % भाग लोहे और निकेल का बना हुआ होता है। उल्का अवशेषो को पहचाना मुश्किल होता है क्योंकि ये सामान्य पत्थरो जैसे ही होते है।

२४३ ईडा और उसका चंद्रमा डीकटील

२४३ ईडा और उसका चंद्रमा डीकटील

क्षुद्र ग्रह सौर मंडल के जन्म के समय से ही मौजुद है। इसलिये विज्ञानी इनके अध्यन के लिये उत्सुक रहते है। अंतरिक्षयान जो इनके पट्टे के बिच से गये है उन्होने पाया है कि ये पट्टा सघन नही है, इन क्षुद्र ग्रहो के बिच मे काफी सारी खाली जगह है। अक्टूबर १९९१ मे गलेलियो यान क्षुद्रग्रह क्रंमांक ९५१ गैसपरा के पास से गुजरा था। अगस्त १९९३ मे गैलीलियो ने क्षुद्रग्रह क्रमांक २४३ इडा की नजदिक से तस्वीरे ली थी। ये दोनो ‘S’ वर्ग के क्षुद्र ग्रह है।

अब तक हजारो क्षुद्रग्रह देखे जा चुके है और उनका नामकरण और वर्गीकरण हो चुका है। इनमे प्रमुख है टाउटेटीस, कैस्टेलिया, जीओग्राफोस और वेस्ता। २पालास४ वेस्ता और १० हाय्जीया ये ४०० किमीऔर ५२५ किमीके व्यास के बिच है। बाकि सभी क्षुद्रग्रह ३४० किमी व्यास से कम के है।

धूमकेतू, चन्द्रमा और क्षुद्रग्रहो के वर्गीकरण मे विवाद है। कुछ ग्रहो के चन्द्रमाओ को क्षुद्रग्रह कहना बेहतर होगा जैसे मंगल के चन्द्रमा फोबोस और डीमोस , गुरू के बाहरी आठ चन्द्रमा ,शनि का बाहरी चन्द्रमा फोएबे वगैरह।

क्षुद्र ग्रहो का वर्गीकरण

  • ४३३ एरोस

    ४३३ एरोस

    १. C वर्ग :इस श्रेणी मे ७५% ज्ञात क्षुद्र ग्रह आते है। ये काफी धुंधले होते है।(albedo ०.०३)। ये सूर्य के जैसे सरचना रखते है लेकिन हाय्ड्रोजन और हिलीयम नही होता है।

  • २. S वर्ग : १७%, कुछ चमकदार(albedo ०.१० से०.२२), ये धातुओ लोहा और निकेल तथा मैगनेशियम सीलीकेट से बने होते है।
  • ३. M वर्ग :अधिकतर बचे हुये : चमकदार (albedo .१० से ०.१८) , निकेल और लोहे से बने।

इनका वर्गीकरण इनकी सौरमण्डल मे जगह के आधार पर भी किया गया है।

  • १. मुख्य पट्टा : मंगल और गुरु के मध्य। सूर्य से २-४ AU दूरी पर। इनमे कुछ उपवर्ग भी है :- हंगेरीयास, फ़्लोरास,फोकीआ,कोरोनीस, एओस,थेमीस,सायबेलेस और हिल्डास। हिल्डास इनमे मुख्य है।
  • २. पृथ्वी के पास के क्षुद्र ग्रह (NEA)
  • ३.ऎटेन्स :सूर्य से १.० AU से कम दूरी पर और ०.९८३ AU से ज्यादा दूरी पर।
  • ४. अपोलोस :सूर्य से १.० AU से ज्यादा दूरी पर लेकिन १.०१७ AU से कम दूरी पर।
  • ५.अमार्स : सूर्य से १.०१७ AU से ज्यादा दूरी पर लेकिन १.३ AU से कम दूरी पर।
  • ६.ट्राजन : गुरु के गुरुत्व के पास।
९५१ गैस्परा

९५१ गैस्परा

सौर मण्डल के बाहरी हिस्सो मे भी कुछ क्षुद्र ग्रह है जिन्हे सेन्टारस कहते है। इनमे से एक २०६० शीरान है जो शनि और युरेनस के बिच सूर्य की परिक्रमा करता है। एक क्षुद्र ग्रह ५३३५ डेमोकलस है जिसकी कक्षा मंगल के पास से युरेनस तक है। ५१४५ फोलुस की कक्षा शनि से नेपच्युन के मध्य है। इस तरह के क्षुद्र ग्रह अस्थायी होते है। ये या तो ग्रहो से टकरा जाते है या उनके गुरुत्व मे फंसकर उनके चन्द्रमा बन जाते है।

क्षुद्रग्रहो को आंखो से नही देखा जा सकता लेकिन इन्हे बायनाकुलर या छोटी दूरबीन से देखा जा सकता है।

कुछ मुख्य क्षुद्रग्रह

क्रमांक. नाम दूरी त्रिज्या द्रव्यमान आविष्कारक दिनांक
2062 एटेन Aten 144514 0.5 ? हेलीन Helin 1976
3554 आमुन Amun 145710 ? ? शुमेकर Shoemaker 1986
1566 आईकेरस Icarus 161269 0.7 ? बाडे Baade 1949
433 एरास Eros 172800 33x13x13 विट Witt 1898
1862 अपोलो Apollo 220061 0.7 ? रेनमुथ Reinmuth 1932
2212 हेफैस्टोस Hephaistos 323884 4.4 ? शेर्न्यख Chernykh 1978
951 गैस्परा Gaspra 330000 8 ? नेउजमीन Neujmin 1916
4 वेस्टा Vesta 353400 265 3.0e20 ओल्बरस Olbers 1807
3 जुनो Juno 399400 123 ? हार्डींग Harding 1804
15 युनोमिया Eunomia 395500 136 8.3e18 डेगासपरीस DeGasparis 1851
1 सेरेस Ceres (अब बौना ग्रह) 413900 487 8.7e20 पीआज्जी Piazzi 1801
2 पलास Pallas 414500 261 3.18e20 ओल्बर्स Olbers 1802
243 इडा Ida 428000 35 ? ? 1880?
52 युरोपा Europa 463300 156 ? गोल्डस्क्म्डित Goldschmidt 1858
10 हायगीआ Hygiea 470300 215 9.3e19 डेगासपरीस DeGasparis 1849
511 डेवीडा Davida 475400 168 ? डुगन Dugan 1903
911 अग्मेम्नानAgamemnon 778100 88 ? रेनमठ Reinmuth 1919
2060 शीरान Chiron 2051900 85 ? कोवल Kowal 1977
फ़रवरी 14, 2011

शेरान

शेरान प्लुटो का सबसे बड़ा चन्द्रमा है।
कक्षा : 19,640 किमी प्लुटो से
व्यास : 1206 किमी
द्रव्यमान : 1.52e21 किग्रा
शेरान पाताल मे मृत आत्मा को अचेरान नदी पार कराने वाले नाविक का नाम है।

शेरान

शेरान

शेरान को जीम क्रिस्टी ने 1978 मे खोजा था। पहले यह माना जाता था कि प्लुटो शेरान से काफी बड़ा है क्योंकि प्लुटो और शेरान के चित्र धुंधले थे।

शेरान असामान्य चन्द्रमा है क्योंकि सौर मंडल मे अपने ग्रह की तुलना मे सबसे बड़ा चंद्रमा है। इसके पहले यह श्रेय पृथ्वी और चंद्रमा का था। कुछ वैज्ञानिक प्लुटो/शेरान को ग्रह और चंद्रमा की बजाय युग्म ग्रह मानते है।

शेरान का व्यास अनुमानित है और इसमे 2% की गलती की संभावना है। इसका द्रव्यमान और घनत्व भी ठीक तरह से ज्ञात नही है।

प्लुटो और शेरान एक दूसरे की परिक्रमा समकाल मे करते है अर्थात दोनो एक दूसरे के सम्मुख एक ही पक्ष रखते है। यह सौर मंडल मे अनोखा है।

शेरान की संरचना अज्ञात है लेकिन कम घनत्व( 2 ग्राम/ घन सेमी) दर्शाता है कि यह शनि के बर्फिले चन्द्रमाओ के जैसे है। इसकी सतह पानी की बर्फ से ढंकी है। आश्चर्यजनक रूप से यह प्लुटो से भिन्न है।

यह माना जाता है कि यह प्लुटो की किसी पिंड से टक्कर से बना होगा।

शेरान पर वातावरण होने मे शंका है।

फ़रवरी 14, 2011

प्लुटो

प्लुटो और शेरान(हब्बल दूरबीन से लिया गया चित्र)

प्लुटो और शेरान(हब्बल दूरबीन से लिया गया चित्र)

प्लुटो यह दूसरा सबसे भारी “बौना ग्रह” है। सामान्यतः यह नेपच्युन की कक्षा के बाहर रहता है। प्लुटो सौर मंडल के सात चंद्रमाओ(पृथ्वी का चंद्रमा, आयो, युरोपा,गनीमीड, कैलीस्टो, टाईटन, ट्राईटन) से छोटा है।
कक्षा : 5,913,520,000 किमी (39.5 AU) सूर्य से औसत दूरी

व्यास :2274किमी

द्रव्यमान :1.27e22

रोमन मिथको के अनुसार प्लुटो पाताल का देवता है। इसे यह नाम सूर्य से इसकी दूरी के कारण इस ग्रह पर अंधेरे के कारण तथा इसके आविष्कार पर्सीवल लावेल के आद्याक्षरो (PL) के कारण मीला है।

प्लूटो 1930 मे संयोग से खोजा गया। युरेनस और नेपच्युन की गति के आधार पर की गयी गणना मे गलती के कारण नेपच्युन के परे एक और ग्रह के होने की भविष्यवाणी की गयी थी। लावेल वेधशाला अरिजोना मे क्लायड टामबाग इस गणना की गलती से अनजान थे। उन्होने सारे आकाश का सावधानीपुर्वक निरिक्षण किया और प्लुटो को खोज निकाला।

खोज के तुरंत पश्चात यह पता चल गया थी कि प्लुटो इतना छोटा है कि यह दूसरे ग्रह की कक्षा मे प्रभाव नही डाल सकता है। नेपच्युन के परे X ग्रह की खोज जारी रही लेकिन कुछ नही मीला। और इस ग्रह X के मीलने की संभावना नही है। कोई X ग्रह नही है क्योंकि वायेजर 2 से प्राप्त आंकड़ो के अनुसार युरेनस और नेपच्युन की कक्षा न्युटन के नियमो का पालन करती है। कोई X ग्रह नही है इसका मतलब यह नही है कि प्लुटो के परे कोई और पिंड नही है। प्लुटो के परे बर्फीले क्षुद्रग्रह, धूमकेतु और बड़ी संख्या मे छोटे छोटे पिंड मौजुद है। इनमे से कुछ पिंड प्लुटो के आकार के भी है।

प्लुटो पर अभी तक कोई अंतरिक्ष यान नही भेजा गया है, हब्बल से प्राप्त तस्वीरे भी प्लुटो के बारे मे ज्यादा जानकारी देने मे असमर्थ है। 2006 मे प्रक्षेपित अंतरिक्षयान “न्यु हारीजांस” २०१५ मे प्लुटो के पास पहुंचेगा।

प्लुटो, शेरान, निक्स और हायड्रा

प्लुटो, शेरान, निक्स और हायड्रा

प्लुटो का एक उपग्रह या युग्म ग्रह है, जिसका नाम शेरान है। शेरान को 1978 मे संक्रमण विधी से खोजा गया था, जब प्लुटो सौर मंडल के प्रतल मे आ गया था और शेरान द्वारा प्लुटो के सामने से गुजरने पर इसके प्रकाश मे आयी कमी को देखा जा सकता था।
2005 मे हब्बल ने इसके दो और नन्हे चंद्रमाओ को खोजा जिसे निक्स और हायड्रा नाम दिया गया है। इनका व्यास क्रमशः 50और 60किमी है।

प्लुटो का व्यास अनुमानित है। इसमे 1% की गलती की संभावना है।

प्लुटो और शेरान का द्रव्यमान ज्ञात है जो कि शेरान की कक्षा और परिक्रमा काल का गणना मे प्रयोग कर ज्ञात किया गया है लेकिन प्लुटो और शेरान का स्वतंत्र रूप से द्रव्यमान ज्ञात नही है। इसके लिये दोनो पिंडो द्वारा दोनो के मध्य गुरुत्वकेन्द्र के परिक्रमा काल की गणना करनी होगी। यह गणना हब्बल दूरबीन द्वारा भी नही की जा सकती है। यह गणना ’न्यु हारीजांस’ द्वारा आंकड़े भेजे जाने के बाद ही संभव हो पायेगी।

प्लुटो सौर मंडल मे आयप्टस के बाद सबसे ज्यादा गहरे रंग का पिंड है।

प्लुटो के वर्गीकरण मे विवाद रहा है। यह 75वर्षो तक सौर मंडल मे नवें ग्रह के रूप मे जाना जाता रहा लेकिन 24अगस्त 2006मे इसे अंतराष्ट्रिय खगोल संगठन(IAU) ने ग्रहो के वर्ग से निकाल एक नये वर्ग “बौने ग्रह” मे रख दिया।

प्लुटो की कक्षा अत्याधिक विकेन्द्रित है, यह नेपच्युन की कक्षा के अंदर भी आता रहा है। हाल ही मे यह नेपच्युन की कक्षा के अंदर जनवरी 1979 से 11फरवरी 1999 तक रहा था। प्लुटो अधिकतर ग्रहो की विपरित दिशा मे घुर्णन करता है।

प्लुटो नेपच्युन से3:2 के अनुनाद मे बंधा हुआ है, इसका अर्थ यह है कि प्लुटो का परिक्रमा काल नेपच्युन से 1.5 गुणा लंबा है। इसका परिक्रमा पथ अन्य ग्रहो से ज्यादा झुका हुआ है। प्लुटो नेपच्युन की कक्षा को काटता है ऐसा प्रतित होता है लेकिन परिक्रमा पथ के झुके होने से वह नेपच्युन से कभी नही टकरायेगा।

युरेनस के जैसे प्लुटो का विषुवत उसके परिक्रमा पथ के प्रतल पर लंबवत है।

प्लुटो की सतह पर तापमान -235सेल्सीयस से -210सेल्सीयस तक विचलन करता है। गर्म क्षेत्र साधारण प्रकाश मे गहरे नजर आते है।

प्लुटो की संरचना अज्ञात है लेकिन उसके घनत्व के( 2 ग्राम/घन सेमी) होने से अनुमान है कि यह ट्राईटन के जैसे 70 % चट्टान और 30 % जलबर्फ से बना होगा। इसके चमकदार क्षेत्र नायट्रोजन की बर्फ के साथ कुछ मात्रा मे मिथेन, इथेन और कार्बन मोनाक्साईड की बर्फ से ढंके है। इसके गहरे क्षेत्रो की संरचना अज्ञात है लेकिन इन पर कार्बनिक पदार्थ हो सकते है।

प्लुटो के वातावरण के बारे मे कम जानकारी है लेकिन शायद यह नायट्रोजन के साथ कुछ मात्रा मे मिथेन और कार्बन मोनाक्साईड से बना हो सकता है। यह काफी पतला है और दबाव कुछ मीलीबार है। प्लूटो का वातावरण इसके सूर्य के समिप होने पर ही आस्तित्व मे आता है; शेष अधिकतर काल मे यह बर्फ बन जाता है। जब प्लूटो सूर्य के समिप होता है तब इसका कुछ वातावरण उड़ भी जाता है। नासा के विज्ञानी इस ग्रह की यात्रा इसके वातावरण के जमे रहने के काल मे करना चाहते है।

प्लुटो और ट्राईटन की असामान्य कक्षाये और उनके गुणधर्मो मे समानता इन दोनो मे  ऐतिहासिक संबध दर्शाती है। एक समय यह माना जाता था कि प्लुटो कभी नेपच्युन का चंद्रमा रहा होगा लेकिन अब ऐसा नही माना जाता है। अब यह माना जाता है कि ट्राईटन प्लुटो के जैसे स्वतंत्र रूप से सूर्य की परिक्रमा करते रहा होगा और किसी कारण से नेपच्युन के गुरुत्व की चपेट मे आ गया होगा।। शायद ट्राऊटन, प्लुटो और शेरान शायद उर्ट बादल से सौर मंडल मे आये हुये पिंड है। पृथ्वी के चंद्रमा की तरह शेरान शायद प्लुटो के किसी अन्य पिंड के टकराने से बना है।

प्लुटो को दूरबीन से देखा जा सकता है।

फ़रवरी 9, 2011

नेरेईड

नेरेइड

नेरेइड

यह नेपच्युन का तीसरा सबसे बड़ा चन्द्रमा  है।

कक्षा : 5,513,400 किमी नेपच्युन से
व्यास : 340 किमी
द्रव्यमान : ?

नेरेइड सागरी जलपरी है, और नेरेउस और डोरीस की 50 पुत्रीयो मे से एक है।

इसकी खोज काईपर ने 1949 मे की था।

नेरेइड की कक्षा सौर मंडल के किसी भी ग्रह या चन्द्रमा से ज्यादा विकेन्द्रित है। इसकी नेपच्युन से दूरी 1,353,600 किमी से 9,623,700 किमी तक विचलित होती है। इसकी विचित्र कक्षा से लगता है कि यह एक क्षुद्रग्रह है या काईपर पट्टे का पिंड है।

फ़रवरी 9, 2011

ट्राईटन

ट्राईटन

ट्राईटन

यह नेपच्युन का सांतवा ज्ञात और सबसे बड़ा चन्द्रमा  है।

कक्षा : 354,760 किमी नेपच्युन से
व्यास : 2700 किमी
द्रव्यमान : 2.14e22 किग्रा

इसकी खोज लासेल ने 1846मे नेपच्युन की खोज के कुछ सप्ताहो मे की थी।

ग्रीक मिथको मे ट्राईटन सागर का देवता है जो नेपच्युन का पुत्र है; इसे मानव के धड़ और चेहरे लेकिन मछली के पुंछ वाले देवता के रूप मे दर्शाया जाता है।

ट्राईटन के बारे मे हमारी जानकारी वायेजर 2 द्वारा 25अगस्त 1989 की यात्रा मे प्राप्त जानकारी तक सीमीत है।

ट्राईटन विपरित दिशा मे नेपच्युन की परिक्रमा करता है। बड़े चंद्रमाओ मे यह अकेला है जो विपरित दिशा मे परिक्रमा करता है। अन्य विपरित दिशा मे परिक्रमा करने वाले बृहस्पति के चन्द्रमा एनान्के, कार्मे, पासीफे तथा सीनोपे और शनि का चन्द्रमा फोबे ट्राईटन के व्यास के 1/10 भाग से भी छोटे है। अपनी इस विचित्र परिक्र्मा के कारण प्रतित होता है कि ट्राईटन शायद सौर मंडल की मातृ सौर निहारिका से नही बना है। यह कहीं और (काईपर पट्टे) मे बना होगा और बाद मे नेपच्युन के गुरुत्व की चपेट मे आ गया होगा। इस प्रक्रिया मे वह नेपच्युन के किसी चन्द्रमा से टकराया होगा। यह प्रक्रिया नेरेईड की आसामान्य कक्षा के पिछे एक कारण हो सकती है।

अपनी विपरित कक्षा के कारण नेपच्युन और ट्राइटन के मध्य ज्वारिय बंध ट्राईटन की गतिज उर्जा कम कर रहा है जिससे इसकी कक्षा छोटी होते जा रही है। भविष्य मे ट्राईटन टूकड़ो मे बंटकर वलय मे बदल जायेगा या नेपच्युन से टकरा जायेगा। इस समय यह एक कल्पना मात्र है।

ट्राईटन का घुर्णन अक्ष भी विचित्र है। वह नेपच्युन के अक्ष के संदर्भ मे 157 डिग्री झुका हुआ है जबकि नेपच्युन का अक्ष 30 डिग्री झुका हुआ है। कुल मिला कर ट्राईटन का घुर्णन अक्ष युरेनस के जैसे है जिसमे इसके ध्रुव और विषुवत के क्षेत्र एक के बाद एक सूर्य की ओर होते है। इस कारण से इसपर विषम मौसमी स्थिती उत्पन्न होती है। वायेजर 2 की यात्रा के समय इसका दक्षिणी ध्रुव सूर्य की ओर था।

ट्राईटन का घनत्व (2.0) शनि के बर्फिले चन्द्रमाओ जैसे रीआ से ज्यादा है। ट्राईटन मे शायद 25% पानी की बर्फ और शेष चट्टानी पदार्थ है।

वायेजर ने ट्राईटन पर वातावरण पाया था जो कि पतला( 0.01 मीलीबार) है और मुख्यतः नाईट्रोजन तथा कुछ मात्रा मे मिथेन से बना है। एक पतला कोहरा 5 से 10किमी उंचाई तक छाया रहता है।

ट्राईटन की सतह पर तापमान 34.5 डीग्री केल्विन (-235 डीग्री सेल्सीयस) रहता है जो कि प्लूटो के जैसे है। इसकी चमक ज्यादा है(0.7-0.8) जिससे सूर्य की अत्यल्प रोशनी की भी छोटी मात्रा अवशोषित होती है। इस तापमान पर मिथेन, नाईट्रोजन और कार्बन डाय आक्साईड जमकर ठोस बन जाती है।इस पर कुछ ही क्रेटर दिखायी देते है;इसकी सतह नयी है। इसके दक्षिणी गोलार्ध मे नायट्रोजन और मिथेन की बर्फ जमी रहती है।ट्राईटन की सतह पर जटिल पैटर्न मे पर्वत श्रेणी और घाटीयां है जो कि शायद पिघलने/जमने के प्रक्रिया के कारण है।

ट्राईटन की सतह पर इसके ज्वालामुखी द्वारा उत्सर्जित नायट्रोजन के प्रवाह से बनी धारियां

ट्राईटन की सतह पर इसके ज्वालामुखी द्वारा उत्सर्जित नायट्रोजन के प्रवाह से बनी धारियां

ट्राईटन की दूनिया मे सबसे विचित्र इसके बर्फिले ज्वालामुखी है। इनसे निकलनेवाला पदार्थ द्रव नाईट्रोजन, धूल और मिथेन के यौगिक है। वायेजर के एक चित्र मे एक ज्वालामुखी(हिममुखी) सतह से 8 किमी उंचा और 140 किमी चौड़ा है।

ट्राईटन, आयो, शुक्र और पृथ्वी सौर मंडल मे सक्रिय ज्वालामुखी वाले पिंड है। मंगल पर भूतकाल मे ज्वालामुखी थे। यह भी एक विचित्र तथ्य है कि पृथ्वी और शुक्र (मंगल भी )के ज्वालामुखी चट्टानी पदार्थ उत्सर्जित करते है और अंदरूनी गर्मी द्वारा चालित है, जबकि आयो के ज्वालामुखी गंधक या गंधक के यौगिक उत्सर्जित करते है और बृहस्पति के ज्वारिय बंध द्वारा चालित है, वहीं ट्राईटन के ज्वालामुखी नाईट्रोजन या मिथेन उत्सर्जित करते है तथा सूर्य द्वारा प्रदान मौसमी उष्णता से चालित है।

फ़रवरी 9, 2011

प्राटेउस

प्राटेउस

प्राटेउस

यह नेपच्युन का छठां ज्ञात और दूसरा सबसे बड़ा चन्द्रमा  है।

कक्षा : 117,600 किमी नेपच्युन से
व्यास : 418 किमी(436x416x402)
द्रव्यमान : ?

प्राटेउस एक सागरी देवता था जो अपना आकार बदल सकता था।

इसकी खोज 1989 मे वायेजर 2 ने की थी। यह नेरेइड से बड़ा है लेकिन बहुत गहरे रंग का है। यह नेपच्युन के इतने समीप है कि इसे नेपच्युन की चमक मे देखा जाना कठिन है।

प्राटेउस अनियमित आकार का चन्द्रमा है। यह शायद अनियमित आकार के पिंड के लिये गुरुत्व के कारण गोलाकार होने की सीमा से थोड़ा ही छोटा है।

इसकी सतह पर क्रेटरो की भरमार है और भूगर्भिय गतिविधी के कोई प्रमाण नही है।